मैं न चुप हूँ न गाता हूँ __अटल बिहारी वाजपेयी

              


   न मैं चुप हूँ न गाता हूँ

सवेरा है मगर पूरब दिशा में
घिर रहे बादल
रूई से धुंधलके में
मील के पत्थर पड़े घायल
ठिठके पाँव
ओझल गाँव
जड़ता है न गतिमयता

         स्वयं को दूसरों की दृष्टि से
        मैं देख पाता हूं
       न मैं चुप हूँ न गाता हूँ

समय की सदर साँसों ने
चिनारों को झुलस डाला,
मगर हिमपात को देती
चुनौती एक दुर्ममाला,

          बिखरे नीड़,
          विहँसे चीड़,
         आँसू हैं न मुस्कानें,
         हिमानी झील के तट पर
        अकेला गुनगुनाता हूँ।
        न मैं चुप हूँ न गाता हूँ.




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