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एक बरस बीत गया__अटल बिहारी वाजपेयी

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एक बरस बीत गया   झुलासाता जेठ मास शरद चाँदनी उदास सिसकी भरते सावन का अंतर्घट रीत गया एक बरस बीत गया   सीकचों मे सिमटा जग किंतु विकल प्राण विहग धरती से अम्बर तक गूंज मुक्ति गीत गया एक बरस बीत गया   पथ निहारते नयन गिनते दिन पल छिन लौट कभी आएगा मन का जो मीत गया एक बरस बीत गया। मौत से ठन गई / अटल बिहारी वाजपेई मैं न चुप हूँ न गाता हूँ __अटल बिहारी वाजपेयी                                       BUY NOW                                     

मैं न चुप हूँ न गाता हूँ __अटल बिहारी वाजपेयी

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                   न मैं चुप हूँ न गाता हूँ सवेरा है मगर पूरब दिशा में घिर रहे बादल रूई से धुंधलके में मील के पत्थर पड़े घायल ठिठके पाँव ओझल गाँव जड़ता है न गतिमयता          स्वयं को दूसरों की दृष्टि से         मैं देख पाता हूं        न मैं चुप हूँ न गाता हूँ समय की सदर साँसों ने चिनारों को झुलस डाला, मगर हिमपात को देती चुनौती एक दुर्ममाला,           बिखरे नीड़,           विहँसे चीड़,          आँसू हैं न मुस्कानें,          हिमानी झील के तट पर         अकेला गुनगुनाता हूँ।         न मैं चुप हूँ न गाता हूँ.   मौत से ठन गई / अटल बिहारी वाजपेई upsc aspirant shayari                           BUY NOW               ...

हरी हरी दूब पर / अटल बिहारी वाजपेयी

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       हरी हरी दूब पर        ओस की बूंदे        अभी थी,        अभी नहीं हैं|        ऐसी खुशियाँ        जो हमेशा हमारा साथ दें        कभी नहीं थी,        कहीं नहीं हैं| क्काँयर की कोख से फूटा बाल सूर्य, जब पूरब की गोद में पाँव फैलाने लगा, तो मेरी बगीची का पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा, मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूँ या उसके ताप से भाप बनी, ओस की बुँदों को ढूंढूँ?       सूर्य एक सत्य है       जिसे झुठलाया नहीं जा सकता       मगर ओस भी तो एक सच्चाई है       यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है       क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊँ?       कण-कण मेँ बिखरे सौन्दर्य को पिऊँ? सूर्य तो फिर भी उगेगा, धूप तो फिर भी खिलेगी, लेकिन मेरी बगीची की हरी-हरी दूब पर, ओस की बूंद हर मौसम में नहीं मिलेगी| अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी A.P.J. Abdul Kalam Biography ...

क़दम मिला कर चलना होगा / अटल बिहारी वाजपेयी

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बाधाएँ आती हैं आएँ घिरें प्रलय की घोर घटाएँ, पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ, निज हाथों में हँसते-हँसते, आग लगाकर जलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में, अगर असंख्यक बलिदानों में, उद्यानों में, वीरानों में, अपमानों में, सम्मानों में, उन्नत मस्तक, उभरा सीना, पीड़ाओं में पलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। उजियारे में, अंधकार में, कल कहार में, बीच धार में, घोर घृणा में, पूत प्यार में, क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में, जीवन के शत-शत आकर्षक, अरमानों को ढलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ, प्रगति चिरंतन कैसा इति अब, सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ, असफल, सफल समान मनोरथ, सब कुछ देकर कुछ न मांगते, पावस बनकर ढलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। कुछ काँटों से सज्जित जीवन, प्रखर प्यार से वंचित यौवन, नीरवता से मुखरित मधुबन, परहित अर्पित अपना तन-मन, जीवन को शत-शत आहुति में, जलना होगा, गलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा।                               धन्यवाद ! ...

पंद्रह अगस्त की पुकार / अटल बिहारी वाजपेयी

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  पंद्रह अगस्त का दिन कहता:   आज़ादी अभी अधूरी है।   सपने सच होने बाकी है,   रावी की शपथ न पूरी है॥   जिनकी लाशों पर पग धर कर   आज़ादी भारत में आई,   वे अब तक हैं खानाबदोश   ग़म की काली बदली छाई॥   कलकत्ते के फुटपाथों पर   जो आँधी-पानी सहते हैं।   उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के   बारे में क्या कहते हैं॥   हिंदू के नाते उनका दु:ख   सुनते यदि तुम्हें लाज आती।   तो सीमा के उस पार चलो   सभ्यता जहाँ कुचली जाती॥   इंसान जहाँ बेचा जाता,   ईमान ख़रीदा जाता है।   इस्लाम सिसकियाँ भरता है,  डालर मन में मुस्काता है॥   भूखों को गोली नंगों को   हथियार पिन्हाए जाते हैं।   सूखे कंठों से जेहादी   नारे लगवाए जाते हैं॥   लाहौर, कराची, ढाका पर   मातम की है काली छाया।   पख्तूनों पर, गिलगित पर है   ग़मगीन गुलामी का साया॥   बस इसीलिए तो कहता हूँ   आज़ादी अभी अधूरी है।   कैसे उल्लास मनाऊँ मैं?   थोड़े दिन की मजबूरी है॥   दिन दूर नहीं खंडित ...

मौत से ठन गई / अटल बिहारी वाजपेई

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ठन गई! मौत से ठन गई! जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई। मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं। मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ, लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ? तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ, सामने वार कर फिर मुझे आज़मा। मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र, शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर। बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं, दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं। प्यार इतना परायों से मुझको मिला, न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला। हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये, आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए। आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है, नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है। पार पाने का क़ायम मगर हौसला, देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई। मौत से ठन गई। 🙏🙏🙏                                BUY NOW

अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी

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     अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 में मध्य प्रदेश के ग्वालियर के एक छोटे से गांव में हुआ था। साधारण परिवार में जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी के पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी अध्यापक थे और साथ ही वे महान कवि भी थे। जिसके चलते अटल बिहारी वाजपेयी को कवित्व का गुण अपने पिता से विरासत में मिला था।  अटल बिहारी वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया (लक्ष्मीबाई ) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई थी। अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर किया था। अटल बिहारी वाजपेयी छात्र जीवन से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे। तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी का 16 अगस्त 2018 को दिल्ली के एम्स में हो गया था।  अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक जीवन - अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने राजनीति जीवन की शुरुआत 1942 में उस समय की थी जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई 23 दिनों के लिए जेल गए। सन् 1951 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहयोग से भारतीय जनस...